भारतीय रेल- हिंदी कविता
हरी झंडी देख दौड़ लगाती,
लाल देख रुक जाती हू
छुक – छुक करते आती हू,
मंजिल तक पहुँचाती हू।
कभी चलती, कभी रूकती,
रंग – बिरंगे तस्वीर दिखाती हू
झरना, पहाड़, हरियाली खेतो से गुजरती हू,
सफर का आनंद दिलाती हू, आगे बढ़ते जाती हू।
हिन्दू , मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको साथ बैठाती हू,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद, गुरुदवारा और चर्च दिखाती हू
मेल से प्रस्थान करती, मंजिल तक पहुँचाती हू
चढ़ते-उतरते नए चेहरों से मेल कराती हू ।
गांव-शहर, शहर-गांव सबको साथ जोड़ती हू,
एकता का पाठ पढ़ाती हू
बिन टिकट जो बैठे उस पर दंड लगाती हू
भारतीय रेल हू , बहुतो को रोजगार दिलाती हू।
शम्भू कुमार के कलम से..