छाया जीवन में
अपने पैर पर हम कुल्हाड़ी मारते जा रहे है
काट रहे है हम उस बेजुबान को
जो हमारी सांसे चला रहे है ।
जिसने सिचा इस जीवन को
जिसने छाया दिया इस तन को
काट दिया हमने उस वन को
जला दिया हमने उपवन को।
पाप बहुत किये है हमने
शहर बसाने,जंगल जला दिया हमने।
लालच में न सोचा हमने
वृक्ष होंगे उस वन में
तभी तो होगी छाया जीवन में |
करेंगे कर्म बुरा, तो बुरा ही मिलेगा
काटेंगे पेड़, तो सांस कहा से मिलेगा ।
टूटी झोपडी, मिट्टी का मकान ही ठीक था
बड़े अस्प्ताल नहीं थे, पर वह आँगन में नीम का वृक्ष ही ठीक था ।
फिर से हमें खुशिया लाना है ,
बिटिया के नाम से एक पेड़ लगाना है
ऑक्सीजन का भंडार फिर हम बनाएंगे ,
सब मिलकर पेड़ लगाएंगे।
प्रकृति हमें बचा लो, न करेंगे ये गलती
पृथ्वी तेरी है । बस हम है यहाँ के कठपुतली ।