हवा में फहरता जाएमोरा झंडा तिरंगा खादी काफर फर लहराये ,मोरा झंडा तिरंगा खादी का | तीन...
poem-कविता
There was a brilliant dialogue from the movie Dead poet society. It says “We read and write poetry because we are members of the human race. And the human race is filled with passion. And medicine, law, business, engineering, these are noble pursuits and necessary to sustain life. But poetry, beauty, romance, love, these are what we stay alive for”.
This category is for that purpose, for poetry, beauty, romance and love.
एकता की भावना-हिंदी कविता क्षेत्रीयता की बड़ी आग में,राष्ट्रीय भावना बनी रहे।देश एक है, राष्ट्र एक हैधुन...
मंदी-प्रभाव -हिंदी कविता महगाई की बड़ी आग में ,मंदी ने भी ली अंगड़ाई |टूटे सपने घटती आय,...
भारत की शान तिरंगा – हिंदी कविता आजादी की शान तिरंगा,भारत की है जान तिरंगा।एकता की पहचान...
Hindi Poem - जिंदगी का संघर्ष
स्वाभिमान की रोटी | पैरो में बेड़िया है,कुछ मजबूरिया है,दिल के दर्द को समेट लिया मैंने,अपने आप...
दादी की वह सबसे प्यारी,बाते करती जैसी हो नानी,मम्मी की है राजकुमारी,भोली सी सूरत,परीयो की रानीप्यारी-प्यारी लाडो...
लड़का हू कमाना है छोड़ चला घर का प्यार, निकल पड़ा नंगे पाँवन कोई ठौर न ठिकाना...
कमाने लगा- हिंदी कविता / Hindi Poem अच्छा हुआ कमाने लगा,रिश्तेदार, दोस्त का खबर भी आने लगा।रुख हवा...
भारतीय रेल- हिंदी कविता हरी झंडी देख दौड़ लगाती,लाल देख रुक जाती हूछुक – छुक करते आती हू,मंजिल...
छाया जीवन में अपने पैर पर हम कुल्हाड़ी मारते जा रहे हैकाट रहे है हम उस बेजुबान...
वो समय था यार का | दोस्त तेरे साथ जिंदगी निराली थीदोस्त तेरे साथ जिंदगी निराली थीना...
परदेसिया ? वो कौन है जो ,गिर गटर मेंगंध शहर का धो रहा| ऊंची इमारतों से ,प्यास...
मुसहरिन माँ | धूप में सूप सेधूल फटकारती मुसहरिन माँ को देखतेमहसूस किया है भूख की भयानक...
मेरे मुल्क की मीडिया | बिच्छू के बिल मेंनेवला और सर्प की सलाह परचूहों के केस की...
चिहुँकती चिट्ठी | बर्फ़ का कोहरिया साड़ीठंड का देह ढंकलहरा रही है लहरों-सीस्मृतियों के डार पर| हिमालय...
लकड़हारिन | तवा तटस्थ है चूल्हा उदासपटरियों पर बिखर गया है भातकूड़ादान में रोती है रोटीभूख नोचती...
ऊख | प्रजा कोप्रजातंत्र की मशीन में पेरने सेरस नहीं रक्त निकलता है साहब| रस तोहड्डियों को...
मूर्तिकारिन | राजमंदिरों के महात्माओंमौन मूर्तिकार की स्त्री हूँ समय की छेनी-हथौड़ी सेस्वयं को गढ़ रही हूँ...
ईर्ष्या की खेती| मिट्टी के मिठास को सोखजिद के ज़मीन परउगी हैइच्छाओं के ईख| खेत मेंचुपचाप चेफा...