परदेसिया ?
वो कौन है जो ,
गिर गटर में
गंध शहर का धो रहा|
ऊंची इमारतों से ,
प्यास किसका
बनकर पसीना बह रहा|
वो कौन है जो ,
बोझा शहर का
कंधे पे आपने ढोह रहा|
बना आशियाना, वो शहर का
खुद सड़क पर सो रहा|
जूतों को ऐनक,
कपड़ो की रौनक|
सब्जी की मंडी
बर्फ वो ठंडी|
धुप बारिस ठण्ड में,
वो कौन है जो नींव बनकर,
किस्सा शहर का लिख रहा|
वो कौन है जो,
दिखता तो है ,
पर नहीं दिख रहा|
बिलख रहा,बच्चा वो किसका
सिसक रही,वो माँ है किसकी|
बोझा लिए,कारवां वो किसका
नम हुई वो आंखें है किसकी|
मैं कदर न तेरी कर पाया
मैं लाज न तेरी रख पाया
परदेसिया तू वापस आया |
यह भी पढ़ें:-नया सवेरा
bahut hi accha sahi baat hai. beautiul poem .
Bahut hi aachi kavita jo migrant labour ki taklif ko gaya karti hai.